Wednesday, November 27, 2013

1.

गुनाह-ए-इश्क किया है,
मुझे सब कुछ कबूल है.

2.
तेरी ही बेरुखी ने गुनेहगार कर दिया,
वर्ना मेरे कदम भी काबे की ओर थे.


3.
क्यूँ वसल के बाद भी अहसास-ए- हिज्र कायम हैं?
उन्स थी जो दरमियाँ शायद खला में ढल गयी.

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