रिलेशनशिप - अ क्रैक्कड पॉट
रिश्तों का बर्तन हालाकि टूट सा गया गया है, मगर
हमने बड़े एहतियात से टूटे हुए टुकड़े यथास्थिति रख दिए है कि दूर से देखने पर लोगो
को आभास हो कि सब ठीक है. और हम भी ये भ्रम पाले रहे कि भैया आल इस वैल. अमूमन लोग
डरते है ये स्वीकारने में की आल इस नोट वेल. बस इस्केपिस्ट बन जाते है, समस्याओं
को एड्रेस करने की कोशिश नहीं करते क्योंकि शायद हमारे पास समाधान ही नहीं है. बस
जर्जर रिश्ते सँभालते जाते है, ईश्वर से ये ये दुआ करते हुए कि हवाओं में इतनी
रवानगी ना हो कि रिश्तो का ये बर्तन जार जार हो जाए. मगर हवाए तो चलेंगी ही. ये
शांत हवाए किसी दिन धोखा देंगी और किसी दिन आंधियां बन कर आएँगी. हम खुशकिस्मत रहे
तो हमारा रिश्ता बच जाएगा जार जार होने से और अगली आंधी न आने के इंतज़ार में. मगर
किसी ने सच ही कहा है....
“ कच्चे धागों के सहारे देरपा होते नहीं.
तेज़ आंधी में पतंगे ना उड़ाया कीजिए.”
पर सवाल ये भी लाजमी है के रिश्तो में दरार आती
क्यों है.एक की गलती दरार डालती है. उस पर दुसरे की गलती उस दरार को और गहरा करती
है. इतना गहरा की बर्तन में जो प्यार भरा था, वो रिसता जाता है, और रिश्ते का बर्तन
धीरे धीरे खाली हो जाता है. हालाकि रिश्तो को संभालना दोनों का ही काम है. एक टूटे
बर्तन में से रिसते पानी को रोकने की कोशिश करता है पर दूसरा ये सोच कर की “अब कोई
फायदा नहीं” ही उस रिसते पानी को रोकने की भी कोशिश नहीं करता. बस ये ही बेरुखी रिश्तो को बींध कर रख देती है.
“ तेरी ही बेरुखी ने गुनेहगार कर दिया,
यूँ तो मेरे कदम भी काबे की ओर थे.”
स्मृतियाँ भी इंसान को किस हद तक परेशां कर सकती
है, ये तब अहसास होता है. अगर बीते समय की मधुर स्मृतियाँ न हो तो ये दरारें
परेशां भी न करे. मगर ये ही स्मृतियाँ हमें यह व्यवहारिक बात विस्मृत करा देती है
कि टूटे प्यालो में हम जल संचय नहीं कर सकते. ऐसे बर्तनों की कोई उपयोगिता नहीं रह
जाती. बस अपने मोह के कारण ही हम उन्हें अपने घर में बने रहने देते है. अगर मोह न
हो तो उन बर्तनो को कबाड़ का हिस्सा बनने में देर न लगे.
खैर अच्छा है कि मोह है. मोह है तो विरक्ति नहीं
है और सारी दुनिया रिश्तो का ये क्रैक्ड पॉट संभाले चल रही है. इस भ्रम के साथ कि भैया
आल इस वैल. और वो, जिन्हें दरारों का पता है, इस उम्मीद के साथ की हवाओं में
रवानगी ना हो.
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